मां दुर्गा को आदिशक्ति कहा जाता है, क्योंकि उनकी शक्तियों का कोई अंत नहीं है. जिस समय समस्त पृथ्वी और स्वयं देवता महिषासुर, मधुकैटभ और शुंभ-निशुंभ जैसे असुरों के आतंक से परेशान थे, तब सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा, पालनकर्ता विष्णु और संहारक शिव के तेज से मां दुर्गा प्रकट हुईं. सभी देवताओं ने अपने कोई ना कोई अस्त्र-शस्त्र माता को दिए और उन्होंने अपनी अष्ट भुजाओं में उसे धारण कर लिया.
पुराणों के अनुसार असुरों को कुंवारी कन्या के हाथों ही मरने का वरदान मिला था. जब मां दुर्गा की उत्पत्ति हुई तो असुरों को मारने के लिए उनमें अथाह बल की आवश्यकता थी, तब त्रिदेवों ने अपने तेज से माता को प्रकट किया. कहते हैं ब्रह्मा जी के तेज से माता के चरण, विष्णु जी के तेज से भुजाएं और शिव जी के तेज से मां दुर्गा का मुखमंडल बना. कहा जाता है कि माता को शिव ने त्रिशूल, विष्णु ने सुदर्शन चक्र, ब्रह्मा ने चारों वेद, हिमालय ने सिंह और इंद्र ने वज्र दिया. माता ने इन्हीं शक्तियों के बल पर असुरों का वध किया.